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Кръстът в съвременната арабска поезия

يرفض التراث الإسلاميّ، بالاستناد إلى القرآن، رواية صلب المسيح وكلّ ما نتج عنها من إيمان مسيحيّ بالفداء والخلاص. فالنصّ القرآنيّ يقول بصراحة: “وقولهم إنّا قتلنا المسيح عيسى ابن مريم رسول الله وما قتلوه وما صلبوه ولكن شُبّه لهم وإنّ الذين اختلفوا فيه لفي شكّ منه ما لهم به من علم إلاّ اتّباع الظنّ وما قتلوه يقيناً. بل رفعه الله إليه وكان الله عزيزاً حكيماً” (النساء،157-158). وقد حبّر المفسّرون المسلمون، على مرّ العصور، صفحات كثيرة لشرح مدلولات هذا النصّ. وإن اختلفت تفسيراتهم، إلاّ ان اكثريتهم الساحقة اجمعت على رفض حادثة موت المسيح على الصليب.

Това не попречи на арабските мюсюлмански поети да използват символа на кръста в много от своите стихотворения. За някои от тях символът на кръста заема централно място в поезията им. Тук можем да споменем поетите Махмуд Даруиш (Палестина), Бадр Шакер Ал-Саяб (Ирак), Салах Абдел-Сабур и Амал Дункул (Египет) и др. Това, което ги обединяваше, беше надеждата, че Възкресението несъмнено идва и че Кръстът е съществена станция по пътя на спасението, който води към радост и избавление от скърбите. Тази надежда достига неописуемо ниво за Ал-Сайяб, тъй като той използва, в допълнение към символа на кръста, символа на Светото причастие и казва:

متُّ، كي يؤكل الخبزُ باسمي،        لكي يزرعوني مع الموسم
كم حياة سأحيا: ففي كلّ حفره        صرتُ مستقبلاً، صرت بذره
صرت جيلاً من الناس،               في كلّ قلب دمي
                Капка от него или част от него.

وينبغي ألاّ نغفل في هذا السياق أنّ هويّة المسيح “الفلسطينيّ” قد فرضت نفسها، في مرحلة أصبح فيها الفلسطينيّون يعانون من ظلم الاحتلال الإسرائيليّ. في هذا السياق تتوجّه إليه الشاعرة الفلسطينيّة فدوى طوقان في عيد ميلاده منشدة:

يا سيّد، يا مجد الأكوان        في عيدك تُصلب هذا العام
                    أفراحُ القدس…

Махмуд Даруиш казва, описвайки трагедията на своя народ:

татко! Растат ли цветя в сянката на кръста?
Пее ли славей?
Защо взривиха малката ми къща?

Има песен на египетски диалект, написана от поета Абдел Рахман Ал-Абнуди и изпълнена от Абдел Халим Хафез след поражението от 1967 г., в която Христос се идентифицира с палестинския народ, чиято кръв кърви точно както Христос кърви, докато носи кръста си :

تاج الشوك فوق جبينه                        وفوق كتفه الصليب
دِلْوَقْتِ ابنك يا قُدس زي المسيح غريب    خانوه نفس اليهود
       Вашият син, Ерусалим, като Христос, трябва да се върне в земята си.

ولم يقتصر رمز الصليب في الشعر العربيّ على الموضوع الوطنيّ بل ثمّة شعراء نظروا إليه نظرة إيمانيّة ملؤها الرجاء. فالشاعر المصريّ نجيب سرور يصوّر مشهد العشاء الأخير بين المسيح وتلاميذه بشكل تسجيليّ في قصيدة “العشاء الأخير” من ديوانه “لزوم ما يلزم”، فيقول:

أغداً أكون مع الصليب أنا العريس/ نفديك بالدم يا معلم… بالنفوس/ لا تقسموا فلسوف يسلمني الذي من بينكم يشاركني الغموس/ أأنا أخونك؟!/ أنت قلت!!/ وأنا؟!/ ستنكرني ثلاثا قبلما الديك يصيح/ إنّا لنقسم يا مسيح…/ لا تُقسموا فغداً أكون على الصليب.

ومن أروع ما قيل في هذا الموضوع قصيدة كأنّها صلاة مسيحيّة للشاعر السودانيّ محمّد الفيتوري عنوانها “القيامة”، يسبّح فيها الشاعر للمسيح قائلاً: مباركةُ خطواتك…/ يا مَن ستأتي على هذه الأرض، مخترقاً جبل السرّ/ هالتك القدسيّة حولك/ مجد السموات حولك/ تأتي كما جئت من قبل/ تغسل عنّا الجريمة والعقم/ ها أنت ذا تتلمّس موتاك…/ تنفض أجسادهم من تراب السنين/ تباركُ أيّامهم… تستدير مهيب الكآبة/ قلبك لا يُنبت الحقد/ مجدك لا يرث الموت/ وجهك لا يلبس الكبرياء.

ثمّ يبتهل الشاعر إلى المسيح قائلاً: أيّها البشر الإلهيّ/ الذي قهر الحقد، والموت، والكبرياء/ ابتسمْ للذين انتهوا فيك/ وابتدأوا فيك/ قلْ كلمتك… كن رجاءً لهم…/ وأجبْ سائليك… أنتَ يا مَن وهبتَ دمك…/ خمرةً، وخلاصاً لأرواحهم/ وبكيتَ على قاتليك!!

Ние сме ограничени в пространството, за да представим всички аспекти на символа на кръста в съвременната арабска поезия. Достатъчно е да кажем, че Христос се явява чрез всяко възвишено художествено или литературно творение, още повече, когато самият Той е субект на това творчество.

Относно моя енорийски бюлетин
Неделя, 12 септември 2004 г
Брой 37

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